कभी रिश्तों से दरकती ,
कभी रिश्तों से महकती,
कभी सपनों को दिखलाती,
कभी सपनों से बहलाती,
कभी औरों को अपनाती,
कभी अपनों से डराती,
मौत के दामन में, ज़िन्दगी की कसक,
रिश्तों से मिलती, ज़िन्दगी की महक.
कभी सजीव, कभी निर्जीव-सी,
कैसी अजीब है ये ज़िन्दगी!!
सहलाती, फुसलाती, हंसती-हंसाती,
दर्द को मेरे मद्धम बनाती,
मेरी रुलाई पे कभी नाम तेरा,
कभी तेरी रुलाई मेरी बनाती,
कभी तू ही रुलाती,
कभी तू हंसाती.
तेरा दामन मैं, तू मेरी ज़िन्दगी!!
पत्थर मुझे बनाया कभी,
फिर उस पे लिख मिटाया नहीं.
कागज़ से कच्चे रिश्तों की कहानी-सी,
दहकते अंगारों पे चलती दीवानी-सी,
अपनों के बीच में वीरानी-सी,
कितने रंगों में रंगी ज़िन्दगी!!
कभी रिश्तों से दरकती ये ज़िन्दगी.
कभी रिश्तों से महकती ये ज़िन्दगी.
प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Monday, November 2, 2009
Wednesday, October 7, 2009
सुबह
मैं सोता हूँ,
मिन्नतें मांग कर,
कि कल की सुबह भी खुबसूरत हो.
जैसा कई सदियों पहले हुआ करती थी.
पर, हर सुबह,
देती है खबर,
किसी के मरने की,
धोखे की,
आतंक की,
परातंत्र की.
हर सुबह में पता हूँ,
इक गंध.
जो
धकियाती हुई चली जाती है,
मेरे मन के भीतर.
मजबूर कर देती है सोचने-
कि मैं इतना मजबूर क्यूँ हूँ?
क्यूँ नही कर सकता हर सुबह प्रकाशित,
इक अलौकिक जीवन से.
क्या आप की सुबह भी कुछ येसी ही है?????
मिन्नतें मांग कर,
कि कल की सुबह भी खुबसूरत हो.
जैसा कई सदियों पहले हुआ करती थी.
पर, हर सुबह,
देती है खबर,
किसी के मरने की,
धोखे की,
आतंक की,
परातंत्र की.
हर सुबह में पता हूँ,
इक गंध.
जो
धकियाती हुई चली जाती है,
मेरे मन के भीतर.
मजबूर कर देती है सोचने-
कि मैं इतना मजबूर क्यूँ हूँ?
क्यूँ नही कर सकता हर सुबह प्रकाशित,
इक अलौकिक जीवन से.
क्या आप की सुबह भी कुछ येसी ही है?????
Thursday, September 3, 2009
ज़रा आहिस्ता चल
दर्द की बारिश सही मद्धम , ज़रा आहिस्ता चल ।
दिल की मिट्टी है अभी तक नम, जरा आहिस्ता चल।
बोल लेने दे सबको ख़िलाफ़ तेरे ,
अभी देख दुबिया की रीत, जरा आहिस्ता चल।
कॉम है तेरा मज़हब, कॉम ही दस्तूर है,
मत मिटा इसे, सम्हल, जरा आहिस्ता चल।
रुख देख कर दरिया का, बदल गए है सभी,
तू मत देख दुनिया, जरा आहिस्ता चल।
इश्क भी मासूम है, तू भी मासूम अभी ,
वक़्त का कर तकाजा , जरा आहिस्ता चल।
अज्म हो फौलाद का तो, फौकियत आती ही है,
कौन रोकेगा तुझे, अब मत आहिस्ता चल।
दिल की मिट्टी है अभी तक नम, जरा आहिस्ता चल।
बोल लेने दे सबको ख़िलाफ़ तेरे ,
अभी देख दुबिया की रीत, जरा आहिस्ता चल।
कॉम है तेरा मज़हब, कॉम ही दस्तूर है,
मत मिटा इसे, सम्हल, जरा आहिस्ता चल।
रुख देख कर दरिया का, बदल गए है सभी,
तू मत देख दुनिया, जरा आहिस्ता चल।
इश्क भी मासूम है, तू भी मासूम अभी ,
वक़्त का कर तकाजा , जरा आहिस्ता चल।
अज्म हो फौलाद का तो, फौकियत आती ही है,
कौन रोकेगा तुझे, अब मत आहिस्ता चल।
tum par
क्या लिखूं मैं तुमपर,
सांझ का इकरार हो तुम-
तुम में ही.
क्या लिखूं मैं तुमपर,
मेरे नीड़ के निर्माण का सपना हो तुम,
उसकी हर ईंट में छुपा प्यार,
और उसका दीपक भी......
सब तुम्ही तो हो.
मेरी बिन तारों की,
अंधियाती जिंदगी का चाँद,
मुरझाती रूह को जल
और टूटते सब्र को बाँध.
सब तुम्ही तो हो.
उंगलियों के बीच की जगह
हमेशा तुम्हारी उँगलियों से भरना चाहता हूँ में,
फिर क्या लिखू तुम्हारे बारे में,
जब सब ही तो तुम हो.......और
में ही तुम हो.
Friday, February 13, 2009
वो प्यार पुराना...
वो प्यार पुराना...
सुर्ख हो जाते थे गाल,
जो निकले पास से भी तो.
बढ जाती थी धड़कन
उनके मुस्कुराने से,
और सरोबार हो जाता था तन
उनके प्यार क एहसास से ही,
लेकिन नही रहा वो ज़माना,
न रहा अब वो प्यार पुराना.
बस मिलो पल दो पल
कह दो 'आई लव यू'
और बस दो वादे कर भूल जाओ
ये प्यार नही है..
प्यार बस एहसास का नाम है,
मिलती हुई साँस का नाम है,
ढलती शाम, उगते सूरज का
उत्तर की हवा और पूर्व का
एहसास बदल जाए,
आप बेवजह खुश हो जाए,
और न सिमटे बस एक दिन में ही,
तो फिर समझो आपको भी हो गया है,
प्यार.....वाही पुराने ज़माने बाला.
कैसा था वो ज़माना
जब प्यार बस न था रिझाना,
एहसासों में जीना,
सपनो को सीना.......
फिर बदलो ठिकाना
बनाओ वाही ज़माना.
सुर्ख हो जाते थे गाल,
जो निकले पास से भी तो.
बढ जाती थी धड़कन
उनके मुस्कुराने से,
और सरोबार हो जाता था तन
उनके प्यार क एहसास से ही,
लेकिन नही रहा वो ज़माना,
न रहा अब वो प्यार पुराना.
बस मिलो पल दो पल
कह दो 'आई लव यू'
और बस दो वादे कर भूल जाओ
ये प्यार नही है..
प्यार बस एहसास का नाम है,
मिलती हुई साँस का नाम है,
ढलती शाम, उगते सूरज का
उत्तर की हवा और पूर्व का
एहसास बदल जाए,
आप बेवजह खुश हो जाए,
और न सिमटे बस एक दिन में ही,
तो फिर समझो आपको भी हो गया है,
प्यार.....वाही पुराने ज़माने बाला.
कैसा था वो ज़माना
जब प्यार बस न था रिझाना,
एहसासों में जीना,
सपनो को सीना.......
फिर बदलो ठिकाना
बनाओ वाही ज़माना.
Monday, October 6, 2008
KUCHH SEEKHO MANAV!
Gaganchumbi patang ko,
kabhi neele aasmaan me dekha hai?
Dekho tum uska yash b,
jo patle dhage se bandhi-
gagan chumne chali,
bina jaat-paat ki or jhuke,
bina havaa roke ruke.
Kabhi khush hote bachhe ki,
kilkari par socha hai?
ki kitna mail hai tumhare andar,
tum kyu nhi yese hanste ho.
khush hone ko b,
pal pal kyu taraste ho.
Khilti kaliya phool bane,
to dekho unka b yash.
gandh- sugandh ki byaar chale,
bhanvre b chuse ras.
Prakrati se kuchh seekho manav,
apne ko sanvaro.
jeevan ek baar mila hai,
usko to nikharo!!
kabhi neele aasmaan me dekha hai?
Dekho tum uska yash b,
jo patle dhage se bandhi-
gagan chumne chali,
bina jaat-paat ki or jhuke,
bina havaa roke ruke.
Kabhi khush hote bachhe ki,
kilkari par socha hai?
ki kitna mail hai tumhare andar,
tum kyu nhi yese hanste ho.
khush hone ko b,
pal pal kyu taraste ho.
Khilti kaliya phool bane,
to dekho unka b yash.
gandh- sugandh ki byaar chale,
bhanvre b chuse ras.
Prakrati se kuchh seekho manav,
apne ko sanvaro.
jeevan ek baar mila hai,
usko to nikharo!!
Wednesday, September 10, 2008
My 2nd poem
AADAT
Hume to aadat hai,
tumhari har baat manne ki.
Hume to aadat hai,
tumhe hasaane, tumhe rulaane ki.
hum hum nhi rehte,
jab sang tumhare rehte hai,
ban jate hai tumhari parchhai.......
sang tumhare chalte hai,
har pal, har dum.
tum khush ho lagta hai,
mei khush hu..........
chahe mei sahta rahu kitne b gum.
tum hanso to,
pata hu apne ko,
hansta aur hansata......
bhool kar k saare gum.
kya karu,
ye hi to aadat hai.
kab kaise ban gai,
pata hi na chala.
par aadat hai,
to juld hi jayegi nhi........
vaise, mitana b kaun chahta hai,
ye,achhi aadat.
myself
Hume to aadat hai,
tumhari har baat manne ki.
Hume to aadat hai,
tumhe hasaane, tumhe rulaane ki.
hum hum nhi rehte,
jab sang tumhare rehte hai,
ban jate hai tumhari parchhai.......
sang tumhare chalte hai,
har pal, har dum.
tum khush ho lagta hai,
mei khush hu..........
chahe mei sahta rahu kitne b gum.
tum hanso to,
pata hu apne ko,
hansta aur hansata......
bhool kar k saare gum.
kya karu,
ye hi to aadat hai.
kab kaise ban gai,
pata hi na chala.
par aadat hai,
to juld hi jayegi nhi........
vaise, mitana b kaun chahta hai,
ye,achhi aadat.
myself
Tuesday, September 9, 2008
MY POEM.......
koshish
kash koshish hoti,
kuch karne ki to,
mei karta sabse pehle,
koshish tumhe zindagi ki har khushi dene ki,
tumhe, har gam ko kam karne ki,
aur tumhe apnapan dene ki.........
par kya karu,
hai hi nhi kuch karne ki aadat,
isiliye to tumhari zaroorat hai.
tumhe bheja hai sayad isiliye.....
usne, ki do tum mujhe vo sab jo vah,banaate vaqt mujhe nhi de paya.
aakhir mitr isiliye to bheje hai usne.
(myself)
kash koshish hoti,
kuch karne ki to,
mei karta sabse pehle,
koshish tumhe zindagi ki har khushi dene ki,
tumhe, har gam ko kam karne ki,
aur tumhe apnapan dene ki.........
par kya karu,
hai hi nhi kuch karne ki aadat,
isiliye to tumhari zaroorat hai.
tumhe bheja hai sayad isiliye.....
usne, ki do tum mujhe vo sab jo vah,banaate vaqt mujhe nhi de paya.
aakhir mitr isiliye to bheje hai usne.
(myself)
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