नज़्म तुम्हारे होंठों के नीचे तिल का उगना है... जो अनायास ही उग आया है लेकिन खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है.
तुम्हारे होंठों की वो प्यारी सी मुस्कान है जो मुझे बेहद पसंद है... जिसे बनाये रखने मैं अपने को तक जाया कर सकता हूँ.
नज़्म तुम्हारा सीने से चिपकना है और फिर लेटे लेटे आसमान ताकना है... तब ऐसा लगता है जैसे जहां में सिर्फ दो ही लोग हों... शायद एक छोटी सी दुनिया बन जाती है जिसमे हम बस दो लोग रह रहे होते हैं.
नज़्म तुमसे झगड़ना है... सच कहो तो उसके बिना दिन पूरा नहीं होता.
तुम्हारी आँखें... जिनमें कई ख्वाब पले हैं, उन्हें चूमना है. चूमने से लगता है जैसे तुम्हारे ख्वाबों को अपना बना रहा हूँ.
नज़्म वो वक़्त है जो तुम्हारे साथ बीतता है... और वो वक़्त भी जो तुम्हारे साथ नहीं बीतता... क्यूंकि वो तुम्हारी याद में बीतता है.
कुछ किताबें हैं... जो मैंने गिफ्ट की थीं... फैज़ की 'सारे सुखन हमारे' है जो तुमने गिफ्ट की थी.
मेरी नज़्में वो सारी नज़्में हैं जो तुमने मुझपर लिखीं... और तुम्हारी नज़्में वो सारी नज़्में हैं जो मैंने तुमपर लिखीं.
तुम्हारा हाथों का छूना और फिर कंधे पर सर टिकाना. आँखों का मलना फिर मेरी आँखों में डूब जाना.
हांथों का चूमना और खो जाना. इन सबसे बेहतर नज़्में नहीं हैं.
नज़्म तुम्हारा मेरे एहसास में जीना है और मेरा सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचना है.
नज़्में लफ्ज़- लफ्ज़ नहीं हैं... नज़्में हमारी साथ बीतती ज़िन्दगी है. जिसका अंत पहले ही लिख दिया गया है.... किसी ना-मुकम्मल नज़्म सा.
तुम्हारे होंठों की वो प्यारी सी मुस्कान है जो मुझे बेहद पसंद है... जिसे बनाये रखने मैं अपने को तक जाया कर सकता हूँ.
नज़्म तुम्हारा सीने से चिपकना है और फिर लेटे लेटे आसमान ताकना है... तब ऐसा लगता है जैसे जहां में सिर्फ दो ही लोग हों... शायद एक छोटी सी दुनिया बन जाती है जिसमे हम बस दो लोग रह रहे होते हैं.
नज़्म तुमसे झगड़ना है... सच कहो तो उसके बिना दिन पूरा नहीं होता.
तुम्हारी आँखें... जिनमें कई ख्वाब पले हैं, उन्हें चूमना है. चूमने से लगता है जैसे तुम्हारे ख्वाबों को अपना बना रहा हूँ.
नज़्म वो वक़्त है जो तुम्हारे साथ बीतता है... और वो वक़्त भी जो तुम्हारे साथ नहीं बीतता... क्यूंकि वो तुम्हारी याद में बीतता है.
कुछ किताबें हैं... जो मैंने गिफ्ट की थीं... फैज़ की 'सारे सुखन हमारे' है जो तुमने गिफ्ट की थी.
मेरी नज़्में वो सारी नज़्में हैं जो तुमने मुझपर लिखीं... और तुम्हारी नज़्में वो सारी नज़्में हैं जो मैंने तुमपर लिखीं.
तुम्हारा हाथों का छूना और फिर कंधे पर सर टिकाना. आँखों का मलना फिर मेरी आँखों में डूब जाना.
हांथों का चूमना और खो जाना. इन सबसे बेहतर नज़्में नहीं हैं.
नज़्म तुम्हारा मेरे एहसास में जीना है और मेरा सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचना है.
नज़्में लफ्ज़- लफ्ज़ नहीं हैं... नज़्में हमारी साथ बीतती ज़िन्दगी है. जिसका अंत पहले ही लिख दिया गया है.... किसी ना-मुकम्मल नज़्म सा.
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