लेनिन क्या था से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि लेनिन क्यों था... और क्यों आज़ादी के आंदोलन के वक़्त युवाओं के लिए ( जिनमें भगत सिंह भी शामिल थे) प्रेरणा का स्रोत रहा. बाकि सेंट पीटर्सबर्ग को बदल के पेत्रोग्राद कर दो और पेत्रोग्राद को बदल के लेनिनग्राद... अंत में होना उसे वापस सेंट पीटर्सबर्ग ही है. नाम बदलने से न तो लेनिन यकायक से पैदा हो गए थे न ही मर गए. न मूर्तियां बनने से लेनिन को जन्मना था न ही ढहाने से मरना था. बस बनाना और ढहाना हमारी सोच हैं. बनाना मुश्किल होता है ढहाना आसान. उदहारण के लिए चरित्र ही को ले लो. मूर्तियां ढहाने पे मुझे मूर्ति से ज्यादा कास्तकार के लिए दुःख होता है. उसने कितने जतन से बनाया होगा.
सोचता हूँ, ढहाने वालों लेनिन के बारे में पढ़ा हो तो बेहतर है. कम से कम भगत सिंह के लेनिन के प्रति रखी सोच ही पढ़ी हो. ...और दुःख जताने वालों ने भी दुनिया भर से लेनिन की मूर्तियां ढहने के कारण जाने हों तो बेहतर हो. कम से कम लेनिनग्राद के सेंट पीटर्सबर्ग हो जाने के कारण ही जाने हो.
मुझे मूर्ति गढ़ने वाले शिल्पी के लिये ज्यादा दुःख है. मूर्तियां गिरा लो, मंदिर या मस्जिद. हत्या आर्ट की ही होनी है.
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