मोहब्बतें कुछ ऐसी कश्तियाँ हैं जो कागज़ की बनी हैं. डूबना तय है. अब ये तुम पर है कि उन्हें कितनी देर सम्हाल सकते हो. कार्डबोर्ड आता महंगा जरूर है और कश्तियाँ बनाना आसान भी नहीं उससे. लेकिन एक बार बन जाये तो चलती बहुत है.
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उसके अपने दुःख हैं, उसकी अपनी मजबूरियां हैं. वो कहती है मैं बस शरीर हो गई हूँ. जैसे हलक से निकल रूह कहीं गुम हो.
मैंने टटोला. रुह अब भी थी उसमें. हाँ, मेरा नाम लिखा था उसपे, शायद इसलिए वो उसे पढ़ना नहीं चाहती थी.
सबकी अपनी अपनी मजबूरियां होती हैं.
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'आदतें सरकारी होती जाती हैं वक़्त के साथ. जैसे पहली गर्लफ्रेंड के दिए गुलाब अब भी कहीं सीने में ज़िंदा लगते हैं, लेकिन काँटों की चुभन धीमे-धीमे कम होती जाती है. इसलिए शायद हर बार अपने लिए नए ग़म खोज लेता हूँ.'
वो हँसते-हँसते बोल देता है. उसकी कोरों में मोती से आंसू हैं.
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'ये 'वाई' है, मेरा बॉयफ्रेंड' वो मिलवाती है. बताओ कैसा है, वो फिर धीरे से लड़के के कान में कहती है.
वो लड़का कुल एक घंटे की मुलाकात में लड़की के बॉयफ्रेंड को ओके कर देता है. 'शायद मेरे से बेहतर है.' वो लड़की से जाते जाते बोलता है.
लड़का लड़की का एक्स था. लड़की जाते जाते लड़के की आवाज की कम्पन में अपने लिए इश्क़ के कतरे ढूंढ लेती है.
अब लड़की 'वाई' के साथ नहीं लड़के के साथ है, दोनों साथ बूढ़े हो रहे हैं.
कुछ प्रेम कहानियां 'द एन्ड' के बाद भी चलती रहती हैं.
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लड़का लेखक है. लड़की भी लिखती है.
दोनों मिलते हैं. एक दूसरे के लिए ढेर सारा लिखते हैं. अपनी ही कहानी साथ नहीं लिख पाते.
वर्षों बाद लड़की अब भी लिखती है. अधिकतर उसी लड़के के बारे में जिससे वो वर्षों से नहीं मिली है.
वर्षों बाद लड़के ने लिखना छोड़ दिया है. शायद इश्क़ में जागी रातें पूरी कर रहा है.
वर्षों बाद लड़के ने लिखना छोड़ दिया है. शायद इश्क़ में जागी रातें पूरी कर रहा है.
वर्षों बाद दोनों मिलते हैं. लड़की उसे अपनी नई किताब देती है. लड़के को जैसे हर शब्द खुद का लिखा लगता है. उसे लगता है जैसे वर्षों बाद लड़की मुझपे लिखते लिखते 'मैं' हो गई है.
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वो लड़के से बोलती है 'देखो, इस रास्ते को छोड़ दो. यहां कुछ नहीं रखा है. अंत में रोओगे. मुझे वैसे भी अपने आसपास रोने वाले लोग अच्छे नहीं लगते.' वो उस लड़की की रूममेट है जिससे लड़का प्यार करता है. शायद वो लड़की और सिचुएशन दोनों को अच्छे से जानती है.
लड़का लाख कोशिशें कर भी राह नहीं बदल पाता... और हश्र वही होता है जिसका डर था.
'देखो भाई, मैंने कहा था.' वो बोलती है.
'मुझे पता था लेकिन शायद मुझे दर्द की आदत हो गई है.' लड़का जवाब देता है. वो उसे पागल कहती है. इस बार पतझड़ में पत्ते कुछ ज्यादा गिरे हैं.
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'तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या होगी.' वो लड़के से कॉलेज के आखिरी दिन पूछती है. दोनों ने कभी ज्यादा बात नहीं की. क़स्बे के कॉलेज का माहौल थोड़ा ऐसा ही था.
'ज़िन्दगी की आखिरी रात तुम्हारे साथ बिताना.' वो आँखों में आँखें डाल कहता है.
वर्षों से दोनों एक साथ जी रहे हैं. आखिरी रात को मुकाम तक पहुँचने में काफी वक़्त है.
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'तुम्हें पता है, जिन कहानियों में प्रेम अंत में जीत जाता है वो कहानियां फेमस नहीं होती.' लड़की कहती है. लड़के को निदा फ़ाज़ली का 'दुनिया जिसे कहते है जादू का खिलौना है, मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है' याद आता है.
'मैं हमारी कहानी फेमस नहीं होने देना चाहता.' वो उत्तर देता है.
वर्षों बाद लड़के की लिखी किताब बहुत फेमस हुई है.
'शायद इस बार थ्योरी गलत हो गई. प्रेम और कहानी दोनों मुकम्मल निकले, फेमस भी हुए.' लड़का लड़की से जो उसकी बीवी और को-ऑथर है धीरे से मुस्कुराते हुए कहता है.
लड़की इस नज़र से देखती है जैसे हमेशा से यही चाहती हो.
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'तुम दसवें माले पे भी इतने खुश कैसे रह लेते हो? अजनबीपन का एहसास नहीं होता?'
'शायद तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से.' लड़की जवाब देती है.
लड़की ने 2002 दंगे अपनी नंगी आँखों से देखे हैं. लड़के ने भी दस वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ा है. अपने आसपास की दुनिया बदलते नंगी आँखों से देखी है.
'मेरे कैनवास के रंगों में अक्सर तुम दिखते हो.' लड़की बोलती है.
'और मेरे लफ़्ज़ों में मुझे अक्सर तुम.'
राइटर लड़का अपना चश्मा ठीक करता है और चश्मे वाली पेंटर लड़की को हमेशा के लिए छोड़ जाने कहीं के लिए चला जाता है. लड़की जाने क्या सोचती पीछे खड़ी रह जाती है.
पिछले ज़ख्म शायद इतने हरे थे कि आगे के रास्ते दिखे ही नहीं. लड़की ब्लू कैनवास पे चंद लफ्ज़ लिखती है... लड़के का नाम.
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