Monday, January 22, 2018

गोरख पांडेय की कवितायेँ

वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे ।

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ये आँखें हैं तुम्हारी 
तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुन्दर
इस दुनिया को
जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिये.

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समय का पहिया चले रे साथी 
समय का पहिया चले 
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी
समय का पहिया चले
रात और दिन पल पल छिन 
आगे बढ़ता जाय
तोड़ पुराना नये सिरे से 
सब कुछ गढ़ता जाय
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी
समय का पहिया चले
उठा आदमी जब जंगल से 
अपना सीना ताने
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर 
पहिया लगा घुमाने
मेहनत के हाथों से 
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी
समय का पहिया चले 

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हत्या की ख़बर फैली हुई है
अख़बार पर,
पंजाब में हत्या
हत्या बिहार में
लंका में हत्या
लीबिया में हत्या
बीसवीं सदी हत्या से होकर जा रही है
अपने अंत की ओर
इक्कीसवीं सदी
की सुबह
क्या होगा अख़बार पर ?
ख़ून के धब्बे
या कबूतर
क्या होगा
उन अगले सौ सालों की
शुरुआत पर
लिखा ?



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