जब धर्म को राजनीति और राजनीति को धर्म की शह मिलती है, आम नागरिक ठगा जाता है.
हमारे दिल रेप पीड़िता के लिए नहीं चीत्कारते, न ही गोरखपुर 70 बच्चों की मौत पर लेकिन हम एक अपराधी के खातिर मरने- मारने पे उतारू हो जाते हैं.
दरअसल जनता जैसी होती है उसे वैसे ही राजनेता मिलते हैं और वैसे ही गुरु. इसलिए हमारे लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में 33% जघन्य अपराधी हैं और लोकनिर्माता के घर (मंदिर) में ऎसे बाबा.
बाबा और ये 30 मौतें असल में हमारी सोच और समझ की प्रतिकृति हैं और हमारे समाज की नग्न तस्वीर.
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