भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हरियाणा इकाई के उपाध्यक्ष रामवीर भट्टïी जानना चाहते थे कि वर्णिका कुंडू आधी रात को अकेले गाड़ी लेकर कहां घूम रही थीं। उनके प्रत्युत्तर में कुंडू ने उचित सवाल पूछा कि उनके पार्टी सहयोगी का बेटा विकास बराला आधी रात को क्या कर रहा था? भट्टïी की टिप्पणी में यह बात निहित है कि कुंडू किसी संदिग्ध वजह से बाहर थीं, या उनके मां-बाप जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने बाद में अपनी बात स्पष्टï करने की कोशिश में ऐसा कह भी दिया। लेकिन उन्होंने विकास बराला और उसके साथी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की। जाहिर सी बात है उन्होंने राखी बंधवाने के लिए तो सात किलोमीटर तक कुंडू का पीछा नहीं किया होगा। हालांकि पुलिस के सामने पड़ते ही कुंडू जादुई अंदाज में उनकी बहिन बन गईं।
हम यह भी जानते हैं कि लैंगिक और राजनैतिक भेद से परे देश के एक बड़े तबके को भट्टïी की बात सही लगी होगी। आधुनिक बनने की चाह रखने वाले हमारे देश में एक मानक स्वीकार्य समझ के मुताबिक महिलाओं से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वे आधी रात को घर से बाहर रहें। ऐसा नहीं है कि यह केवल आक्रामक पुरुषों से बचाव के लिए है बल्कि यह मर्दवादी सोच को असहज करने का काम भी करता है।
मर्द चाहे बार में शराब पी रहा हो, डेट पर बाहर हो, देर रात की शिफ्ट में काम करके घर लौट रहा हो, ढेर सारी शराब पीने के बाद घर आने के लिए कैब बुक कर रहा हो, उससे कोई सवाल नहीं करता। अगर कोई महिला ऐसी ही गतिविधियों में शामिल हो और किसी घटना की पीडि़त हो जाए तो क्या उसे खारिज नहीं कर दिया जाएगा? चंडीगढ़ से भाजपा की सांसद किरण खेर भले ही महिला अधिकारों की और उनके रात में बाहर निकलने के अधिकार को कितनी ही तवज्जो दे लें, भारत के स्त्री-पुरुष मूलभूत रूप से महिलाओं के साथ अलग व्यवहार के आदी हैं। कॉलेज प्रशासन लड़कियों के लिए वेशभूषा संबंधी सलाह जारी करते हैं लेकिन वे कभी पुरुषों को नहीं कहते कि वे क्या पहनकर आएं और क्या नहीं? दिल्ली में जब एक युवा महिला टीवी पत्रकार को देर रात काम से घर लौटते वक्त गोली मार दी गई तो प्रदेश की तत्कालीन महिला मुख्यमंत्री ने कहा था कि महिलाएं इस तरह के काम क्यों करती हैं? पुणे में शिवसेना की महिला पार्षद दुकानों पर कथित रूप से भड़काऊ लगने वाले महिलाओं के पुतलों के खिलाफ अभियान छेड़ती है।
यह दोहरे मानक का उदाहरण है जो लगभग यह कहता है कि जो महिलाएं एक खास ढंग से आचरण नहीं करती हैं उनको प्रताडि़त किया जा सकता है। मानो वह चाहती है कि उसके साथ कुछ गलत हो। अब आप सोचते रहिए कि भला दुनिया में कौन ऐसी औरत होगी जो शोषण या बलात्कार की ख्वाहिशमंद होगी। इससे जुड़ा एक सवाल यह भी है कि फिर इतनी बड़ी तादाद में छोटी बच्चियों के साथ दुर्घटनाएं क्यों होती हैं जो उपरोक्त में से कोई काम नहीं करतीं।
कुंडू का निशाने पर आना तय है। वह डीजे का काम करती हैं। बड़े शहरों में भी कम ही लड़कियां यह पेशा अपनाती हैं, फिर चंडीगढ़ जैसे पारंपरिक शहर की तो बात ही छोड़ दीजिए। इससे उनके देर से लौटने की वजह समझी जा सकती है। बहरहाल, बराला को अभी यह बताना बाकी है कि वह आधी रात को क्या कर रहे थे? महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कुंडू उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अपनी पहचान खुद बनाती हैं और अपनी शर्तों पर जीती हैं। उन्होंने अपना चेहरा छिपाने की जहमत नहीं उठाई जबकि देश का कानून यौन अपराध पीडि़तों को इसकी इजाजत देता है। उन्होंने कहा कि वह अपराधी नहीं हैं। कुंडू कहती हैं कि वह तमाम यौन पीडि़तों के साथ अपनी एकजुटता दिखाना चाहती हैं और उनके साथ मिलकर गलत को गलत कहना चाहती हैं। ऐसी असहज करने वाली मुखरता भारतीय समाज में दुर्लभ है। याद कीजिए कोलकाता में 2013 में सुजेट जॉर्डन नामक स्त्री के साथ हुई बलात्कार की घटना। राज्य की महिला मुख्यमंत्री ने उस महिला की आलोचना करते हुए कहा था आखिर वह बार में गई ही क्यों। जॉर्डन ने भी अपनी पहचान छिपाने से इनकार कर दिया था। वह बहुत कम समय में ही महिला अधिकारों का पैरोकार चेहरा बन गई थीं। उनका 2015 में निधन हो गया।
दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए हौलनाक सामूहिक बलात्कार के बाद तमाम युवतियों ने कड़कड़ाती ठंड में राजपथ पर विरोध प्रदर्शन किया। वह युवती अपने एक पुरुष मित्र के साथ घूम कर लौट रही थी। इस मामले में भी पीडि़त के पिता ने अपनी बेटी का नाम जगजाहिर करते हुए कहा कि वह अपराधी नहीं थी। विरोध करने वालों को वैश्विक स्तर पर सुर्खियां मिलीं, देश में बलात्कार और यौन हिंसा को लेकर सख्त कानून बने। इसके बावजूद आप इस बात से समझ सकते हैं कि समस्या कितनी गहरी है कि तत्कालीन राष्ट्रपति के बेटे ने विरोध प्रदर्शन करने वालों को यह कहकर खारिज कर दिया था कि वह 'डेंटेड, पेंटेड' महिलाओं का समूह है। संक्षेप में कहें तो उनका तात्पर्य था कि जो महिलाएं मेकअप में रहती हैं उनको गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं।
इस नए भारत में आपका स्वागत है। देश 70 वर्ष का होने जा रहा है। यहां महिलाएं कंपनियों का नेतृत्व करती हैं, विमान उड़ाती हैं, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीतती हैं, पुलिस में काम करती हैं और जल्दी ही सेना में लड़ाकू भूमिका में नजर आएंगी। वे अपनी रोटी खुद कमाती हैं। वे अपनी क्षमताओं के मुताबिक ताकत भी हासिल करेंगी। वे पिताओं, पतियों और बेटों के भरोसे नहीं रहेंगी। मंगलूरु में पब में महिलाओं पर हमला करने वाली राम सेना के प्रमोद मुथालिक के खिलाफ शुरू हुआ पिंक चड्डïी अभियान और भट्टïी का मजाक उड़ाने वाला ट्विटर हैंडल, दोनों इस नए आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। हम महिलाओं के उन छोटे से तबके से आते हैं जिनको ये अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे में अधिक गहरे और तेज आर्थिक सुधार ही तात्कालिक आवश्यकता हैं।
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