जब वे एक पत्थर से बने सर्प को देखते हैं
तो उसपर दूध चढ़ाते हैं.
तो उसपर दूध चढ़ाते हैं.
यदि असली सांप आ जाए तो
कहते हैं- "मारो, मारो."
कहते हैं- "मारो, मारो."
देवता के उस सेवक को
जो भोजन परसने पर
खा सकता है,
वे कहते हैं-
"चल हट, दूर जा, दूर रह."
जो भोजन परसने पर
खा सकता है,
वे कहते हैं-
"चल हट, दूर जा, दूर रह."
लेकिन ईश्वर की पाषाण प्रतिमा को
जो खा नहीं सकती,
वे छप्पन भोग व्यंजन परोसते हैं.
जो खा नहीं सकती,
वे छप्पन भोग व्यंजन परोसते हैं.
--बासवन्ना (बारहवीं सदी, कन्नड़ में)
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