Saturday, October 1, 2016

विदेशी निवेश के फर्जी रास्तों पर पहरा | भरत झुनझुनवाला

भारत ने मारीशस के साथ अस्सी के दशक में दोहरे टैक्स की संधि की थी। इस संधि का दुरुपयोग हो रहा था। शेयर बाजार में किये गये निवेश से दो प्रकार से लाभ हासिल होता है। कम्पनी द्वारा प्रति वर्ष शेयर पर डिविडेन्ट दिया जाता है। साथ-साथ शेयर की मूल्य वृद्धि से भी लाभ होता है। जैसे आपने किसी कम्पनी का शेयर 100 रुपये में खरीदा और दो साल के बाद इसे 150 रुपये में बेच दिया। आपको 50 रुपये का लाभ हुआ। इस लाभ को कैपिटल गेन्स कहा जाता है।
अस्सी के दशक में मारीशस के साथ हुए दोहरे टैक्स की संधि के अंतर्गत मारीशस से भारत में किये गये निवेश पर कैपिटल गेन्स टैक्स भारत में देय नहीं होता था। केवल मारीशस द्वारा कैपिटल गेन्स टैक्स वसूला जा सकता था। लेकिन मारीशस में कैपिटल गेन्स टैक्स की दर शून्य थी। इसलिये भारत में किया गया निवेश कैपिटल गेन्स टैक्स से मुक्त हो जाता था। भारत में इस टैक्स को वसूल नहीं किया जाता था, चूंकि इसे वसूल करने का अधिकार मारीशस के पास था। अतः दुनिया के तमाम निवेशक भारत में मारीशस के रास्ते निवेश करते थे। मसलन अमेरिकी निवेशक भारत में सीधे निवेश करे तो उसे भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। वही निवेशक मारीशस में एक कम्पनी बनाये और इस कम्पनी के माध्यम से भारत में निवेश करे तो उस पर कैपिटल गेन्स नहीं देना पड़ता था।

तमाम भारतीयों ने भी इस रास्ते का दुरुपयोग किया। जैसे आपको अपनी कम्पनी में एक करोड़ रुपये का निवेश करना है। आप सीधे निवेश करेंगे तो आपको इस पर कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। इसलिये आपने इस रकम को हवाला के माध्यम से मारीशस भेज दिया। मारीशस में एक कम्पनी बनाई। इस कम्पनी द्वारा अपनी ही पूंजी को अपनी ही भारतीय कम्पनी में निवेश कर दिया गया। अब यह विदेशी निवेश कहलाया। इस निवेश पर आपको भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं अदा करना पड़ा, चूंकि इस टैक्स को वसूल करने का अधिकार मारीशस के पास था। पूर्व में हुई इस दोहरे टैक्स की संधि में हाल में संशोधन कर दिया गया था। नई व्यवस्था में मार्च 2017 तक मारीशस से भारत में किये गये निवेश में पूर्ववत कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं देना होगा। 2017 से 2019 तक भारत में लागू कैपिटल गेन्स टैक्स दर का आधा देना होगा। 2019 के बाद भारत में पूरा कैपिटल गेन्स टैक्स देय होगा। मारीशस द्वारा इस संशोधन को स्वीकार कर लेने से 2019 के बाद मारीशस से भारत में केवल सच्चा निवेश आयेगा। अपनी पूंजी की घर वापसी के लिये मारीशस का रास्ता बन्द हो जायेगा। अब मारीशस से केवल सच्ची पूंजी भारत आयेगी।
मारीशस की तर्ज पर भारत ने यूरोप में स्थित द्वीपीय देश साइप्रस के साथ भी दोहरे टैक्स की संधि कर रखी थी। मारीशस के साथ इस संधि में संशोधन किये जाने के बाद संभावना थी कि विदेशी निवेश का फर्जीवाड़ा अब साइप्रस के माध्यम से होने लगेगा। बीते सप्ताह कैबिनेट ने साइप्रस के साथ दोहरे टैक्स संधि में भी संशोधन को मंजूरी दे दी है। सिंगापुर तथा नीदरलैण्ड के साथ इसी प्रकार के सम्पन्न हुए समझौतों में भी संशोधन किया जा रहा है। अतः अब इस प्रकार की संधि की छत्रछाया तले भारत में फर्जी विदेशी निवेश करने के सभी रास्ते बन्द हो जायेंगे। इस साहसिक कदम को उठाने के लिये सरकार को बधाई।
इन कदमों के कारण फर्जी विदेशी निवेश पर ब्रेक लग जायेगी। परन्तु सच्चा विदेशी निवेश आयेगा, यह संदिग्ध है। कारण कि ग्लोबलाइजेशन का सर्वत्र संकुचन हो रहा है। नीदरलैण्ड की ब्यूरो आफ इकोनामिक पालिसी के अनुसार गत वर्ष विश्व व्यापार में 13.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। सलाहकार ए. टी. कीयरनी के अनुसार वर्तमान में विश्व में हो रहा विदेशी निवेश वास्तव में ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटने को इंगित करता है। उनके अनुसार विश्व के तमाम देश मुक्त व्यापार से पीछे हट रहे हैं। वे आयात कर बढ़ा रहे हैं, जिससे घरेलू उद्यमों को संरक्षण मिले और अपने देश में ही माल का अधिकाधिक उत्पादन हो।
संरक्षण की इन बढ़ती दीवारों को माल के आयात से पार करना कठिन होगा। इसलिये घरेलू बाजार में माल बेचने के लिये कम्पनियों द्वारा मेजबान देशों में फैक्टरी लगाई जा रही है। जैसे लेनोवो कम्पनी को भारत में कम्प्यूटर का आयात करने पर टैक्स देना पड़े तो वह भारत में कम्प्यूटर का उत्पादन करेगी, जिससे वह भारत में अपना माल बेच सके। अर्थ हुआ कि विदेशी निवेशक भारत में माल का उत्पादन भारतीय बाजार में माल बेचने के लिये करना चाहते हैं। वे भारत में माल बनाकर निर्यात करने के लिये भारत में निवेश नहीं कर रहे हैं, जैसा कि चीन में उन्होंने किया है।
पिछले 17 माह में हमारे निर्यातों में लगातार गिरावट आ रही है। यह भी विश्व व्यापार के संकुचन को दर्शाता है। साथ ही यह भी बताता है कि निर्यात के लिये भारत में विदेशी निवेश नहीं आयेगा। ‘‘मेक इन इंडिया’’ के पीछे सोच थी कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में फैक्टरी लगाकर विश्व बाजार में माल सप्लाई करेंगी जैसा कि उनके द्वारा चीन में किया गया था। परन्तु वह समय अलग था। उस समय ग्लोबलाइजेशन की तरफ दुनिया बढ़ रही थी। अब ग्लोबलाइजेशन के परिणाम सामने आने लगे हैं। पूरी दुनिया में बड़ी कम्पनियों के प्राफिट बढ़ रहे हैं जबकि आम आदमी के रोजगार घट रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दोनों प्रत्याशियों ने अमेरिकी नागरिकों के रोजगार के प्रति आवाज उठाई है। आने वाले समय में विश्व व्यापार घटेगा। इसलिये ‘‘मेक इन इंडिया’’ के फेल होने की सम्भावना बनती है।
बची बात विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में भारतीय बाजार के लिये माल बनाने की तो जैसे मारुति द्वारा भारत में कार उत्पादन किया जा रहा है। यहां हमारे सामने दो परस्पर विरोधी लक्ष्य हैं। अकसर विदेशी कम्पनियों के पास उन्नत तकनीकें होती हैं। इससे वे उत्तम क्वालिटी का सस्ता माल बना सकती हैं। इससे हमारे उपभोक्ता को लाभ होता है। दूसरी तरफ इनके द्वारा मुख्य रूप से आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन किया जाता है। फलस्वरूप हमारे उद्यमियों एवं श्रमिकों को चोट पहुंचती है।
सरकार को इन दोनों परस्पर विरोधी लक्ष्यों के बीच तालमेल बैठाना है। यदि घरेलू उद्यमों को संरक्षण देंगे तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारतीय बाजार को माल सप्लाई करने के लिये भी भारत में विदेशी निवेश नहीं लायेंगी। तब हर प्रकार का विदेशी निवेश कम हो जायेगा और भारत अपनी पूंजी से अपनी अर्थव्यवस्था को बनाने की ओर बढ़ेगा। मारीशस तथा साइप्रस से दोहरे टैक्स संधि में संशोधन करना इस सुदिशा की ओर पहला कदम है। इसका श्रेय मोदी सरकार को जाता है।

Source: Patrika Newspaper

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