शादी उस मंहगी सिगरेट की तरह है जिसके अंत में ढंग का
फ़िल्टर लगा है... इमोशंस अंदर फ़िल्टर होके जाते हैं. इसलिए कुछ सालों में सब इश्क़-विश्क उड़ जाता है... और बचता क्या है… वही फ़िल्टर ... जिसे सड़क पे कुचला जाने के लिए फेंक दिया जाता है.
पता है फ़िल्टर का नाम क्या है?
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दम्भ.
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