वक़्त को पैरों में लपेट वो हमेशा माँ के पांवों से चिपक पापा को ऑफिस जाने से रोकती है. पिता चुप ही चुप धीरे से गाड़ी आगे बढ़ा निकल जाते हैं. दूसरे माले से मैं देखता हूँ सब. हर सुबह उसकी दो साल के वो भीगी आँखे, उसकी माँ की धीमी लौटती चाप और पिता की धीरे-धीरे बढ़ती बाइक.
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