दरिये के इस तरफ होते हैं लोग, उस तरफ तुम... शांत लहर, वहां तक पहुँचने के पूरे मौके और इश्क़ की नाव. लेकिन हम वहां तक नहीं पहुँच पाते, बस किनारे से हाथ हिलाते रह जाते हैं.
डर तुम्हारे वजूद से नहीं है, डर खुद की बेवकूफी का है. इश्क़ की नांव एक बार डूबे तो अगली दफे दरिया में कदम रखने में डर लगना ही है... और मैं तो इस दफे बड़ी मेहनत से किनारे लगा हूँ.
न मैं पत्थर हूँ, न बावरा... बस इश्क़ के दरिये में फिर उतरने की हिम्मत नहीं... डर है, इस बार डूबा तो उबर न पाऊं.
डर तुम्हारे वजूद से नहीं है, डर खुद की बेवकूफी का है. इश्क़ की नांव एक बार डूबे तो अगली दफे दरिया में कदम रखने में डर लगना ही है... और मैं तो इस दफे बड़ी मेहनत से किनारे लगा हूँ.
न मैं पत्थर हूँ, न बावरा... बस इश्क़ के दरिये में फिर उतरने की हिम्मत नहीं... डर है, इस बार डूबा तो उबर न पाऊं.
#IshqKaDariya
No comments:
Post a Comment