Sunday, May 31, 2015

बालिग


तुम न कहती थीं
बड़ा कब होऊंगा मैं
वही हरकतें बचपन से अब तक.
भूल जाता हूँ तुम्हें, फुटबॉल देख
और बारिश में भीगना चाहता हूँ तर-बतर,
गुनगुनाता हूँ अपना लिखा कुछ भी, बेसुरे.
और कपडे यूँ लपेटे
तुम्हारे संग किसी भी पार्टी में पहुँच जाता हूँ.

बेहद सलीका आ गया है,
हंसने की जगह मुस्कुरा के रह जाता हूँ
और रस्ते फुटबॉल नहीं देखता,
चुपचाप गुजर जाता हूँ,
गुजर जाती है बारिश.

तुम्हारे जाने के बाद लगता है
बालिग हो गया हूँ मैं,
समझ आ गई है.

No comments: