Saturday, December 27, 2014

Unposted Letter



लिखना जब ज़िन्दगी का आखिरी न मनाया त्यौहार लगे
और तुम्हारी सांसे फिर मुझे गर्माहट दें
चुपके से लबों में समा जीवित हो जाओ,
तो आखिरी लफ्ज़ भी आखिर तुम्हें ही दूँ.
तुमसे दूर जाना बोर्डिंग जाने सा है,
भय, भय और भय बस.
तुम तक पहुंचना मनु का पहला कदम धरती पे.
अफ़सोस में तुमसे दूर नहीं जा सकता, न तुम तक ही.
शादी के बाद लड़कियां घर से पराई नहीं होती बस,
तारों से भी होती हैं.
वे तार जो सितारे लाने के वादे करते हैं
फिर खुद अँधेरे में डूब जाते हैं.
पराई औरतें पराये मर्दों से बात नहीं करती
सभ्यता के आदम में किसी गधे ने लिखा था ये,
लेकिन पराई औरतें पराये आदमी के साथ जी लेती हैं,
प्यार और ऊष्मा के परे.
आज की कविता तुम्हारे नाम लिखता,
स्याही कम है, कागज़ स्याह हैं
और रात आधी है, जो काट रहा है
तुम्हारा ये तार सितारों की ओट में.
कविता टेबल पे पड़े
बिस्किट कुतर रही है.

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