वक़्त के तागे
काट दे माज़े से.
कुछ चुरा ले रंग
देख बिखरे पड़े हैं,
जैसे किसी ने अँधेरी रात में हज़ार तारे बिखेरे हों
अँधेरा मिटाने!
देख ये लम्हा भी फिसल गया
रूखा रूखा सा.
चल ज़रा मुस्कुरा दे.
मातम को जुराबों संग
पहन लेते हैं...
घिसता रहेगा, चलते रहेंगे हम.
चल तेरी आँखों से
गम की फसल काट
भर देते हैं कुछ खुशियाँ.
फिर तू ताकना,
दुनिया रंगीन दिखेगी.
देख तुझे समझाते समझाते
लिख दी
ये ऊट-पटांग सी नज़्म!
अब तो मुस्कुरा दे....
चल, ये नज़्म भी तुझे दी!
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Pic: New year, New Rays @Mahabaleshwar