Thursday, October 14, 2010

तो जानते मैं क्या सोचता हूँ

मेरी आँखों से कुछ रंग जो चुराते,
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ.


किनारे से आगे कभी सोचा ही नहीं,
लहरों संग बह,
आसमां छूने का एहसास जगाते,
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ.


क्या पता क्यूँ,
दरख्तों से झाँका
और लौट गये तुम.
जरा दो पल बिताते
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ.


किसी ने कुछ कहा,
तुमने बिन जाने ही सच मान लिया.
ये आवरण हटाते,
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ.


कह दिया दोस्त,
मुश्किलों में मैं हूँ तुम्हारा.
जरा दोस्ती निभाते,
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ.


                  ~V!Vs***      

7 comments:

VIVEK VK JAIN said...

P.S.: दरख्तों means daraarein (Cracks inside walls)

सुज्ञ said...

सुंदर रचना!!

आभार विवेक!!

Anupama Tripathi said...

अच्छी रचना है
शुभकामनाएं

VIVEK VK JAIN said...

thnx anupama ji, sugya ji.........

Gazal Bharadwaj said...

क्या पता क्यूँ,
दरख्तों से झाँका
और लौट गये तुम.
जरा दो पल बिताते
तो जानते मैं क्या सोचता हूँ...

there are those who come like waves... strike, touch and go back...
there are those which mingle4ever...
like thrust meeting thrust...
power meeting power..

Saumya said...

jo keh diya maine
use hi samajh liya tumne
jo dil mein reh gaya hai...
kaash use bhi padh paate
to jaante main kya sochta hun!

रंजू भाटिया said...

bahut sundar rachna lagi yah