भाईसाहब बड़े हो रहे हैं और धीमे धीमे बातें भी ज्यादा करने लगे हैं और आपके वाक्यों में से Phrases (वाक्यांश) भी पकड़ने करने लगे हैं. धीमे-धीमे अक्ल भी आ रही है और जिस मासूमियत से आ रही है उसपर आपको इनपर बहुत सारा प्यार आता है साथ ही बहुत सारी हंसी.
मम्मा को '...क्यों शौर्य' वाक्यों के अंत में बोलने की आदत है. जैसे बोलेगी "आम खा लिया जाए, क्यों शौर्य?" या "आपको बाहर जाने के लिए तैयार कर दें क्यों शौर्य?"
हम फर्स्ट फ्लोर पे रहते हैं, एक दिन भाईसाहब को नीचे खेलने जाना है. भाईसाहब मम्मा का हाथ पकड़े हैं और कहते हैं "मम्मा, नीचे चलो... क्यों मम्मा... क्यों मम्मा!"
ऐसे ही पापा बातों बातों में कह देते हैं '...और बताओ शौर्य' ऐसे ही इनके नानाजी बातों-बातों में कभी-कभी कहते हैं 'क्या हालचाल... सब ठीक शौर्य?'
पापा ऑफिस के लिए जूते पहन रहे हैं, भाईसाहब सामने खड़े हैं, पापा कहते हैं "...और बताओ शौर्य." भाईसाहब पहले हाथ मटकाते है फिर नानाजी के जैसे हाथ पीठ के पीछे फोल्ड करते हैं और पापा को दुहराते हुए कहते हैं "औल बताओ पापा... ता हालचाल... छब ठीक है..."
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