कहते हैं स्वयं के
अधिकारों के लिए खड़ी हुई स्त्री सबसे खूबसूरत स्त्री होती है. किताबें थाम समाज से
लड़ती सावित्रीबाई फुले, रमाबाई सरस्वती और तलवार थाम अंग्रेजों से लड़ती कित्तूर
रानी चेन्नम्मा, झाँसी रानी लक्ष्मीबाई बेहद खूबसूरत रही होंगी.
मैंने पूर्व में जो
उदाहरण दिए हैं उनमें अधिकतर स्त्रियों के हैं. दरअसल यही हमारा आठवां इंडिया
है. देश की आधी आबादी का भारत.
निर्भया केस के बाद
पुलिस से भिड़ती, कैंडल मार्च करती स्त्रियाँ बेहद खूबसूरत स्त्रियाँ थीं. संसद में
33% रिजर्वेशन के लिए संसद में बहस करती लड़कियां देखिए, हक की लड़ाई उनके चेहरे पर
अप्रतिम सौंदर्य लेकर आता है.
मेरी शिक्षिका माँ
जब सुबह स्कूल के लिए निकलती है तो बेहद ताकतवर और खूबसूरत नज़र आती है.
उन्नीसवीं सदी में
Public Places (सार्वजानिक स्थलों) पर स्त्रियाँ कहीं नहीं थीं, बीसवीं सदी की
शुरुआत में उन्होंने अपने डैनों को पसारना शुरू किया.
कल्पना दत्त, एनी
बेसेंट, सरोजनी नायडू, अम्बिका साराभाई जैसे कई नामों ने घर से निकलकर स्वतंत्रता
के लिए लड़ाई लड़ी. इसके लिए महात्मा गाँधी के प्रोत्साहन और अहिंसक आन्दोलन का
अभूतपूर्व योगदान रहा. जिसने इन्हें घर से निकलकर संघर्ष करने के लिए प्रेरित
किया.
1970 तक स्त्रियाँ
मुख्यत: खेतों में काम करती नज़र आती थी.
1980 तक आप स्त्री
को मुख्यत: शिक्षक या डॉक्टर के रूम में देख पाते थे.
लेकिन इक्कीसवीं सदी
देखिए, यहाँ लडकियां पॉलिटिक्स ज्वाइन करने में सबसे आगे नज़र आती हैं, मल्टीनेशनल
कंपनियों में ऑफिस जाती हैं, वीकेंड्स सेलिब्रेट करती हैं. हर क्षेत्र में परचम
लहराए हुए हैं. सिविल सर्विसेज एग्जाम के पिछले तीन सालों के टोपर्स के नाम
देखिये, तीनों लड़कियां ही हैं.
यह आठवां भारत जिसे पितृसत्ता
ने हमेशा द्वितीय स्तर का नागरिक समझा है उसने बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से स्वयं
की स्वतंत्रता के साथ-साथ राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका
अदा की है.
लेकिन ऐसा नहीं है
कि आठवें भारत के सामने चुनौतियाँ नहीं हैं. इस भारत से लोग डरे हुए नहीं हैं या
पितृसत्ता ने बाधाएं पैदा नहीं की हैं.
जो डरा हुआ भारत है
वही नौवां इंडिया है.
इस नौवें शम्भू
प्रताप सिंह राठौर जैसे यौन शोषक अधिकारी भी शामिल हैं, निर्भया केस के छः क्रूर
अपराधी भी शामिल हैं. साथ ही रेप पर बेहद अशोभनीय और बेहूदा बयान- ‘लड़कों से
गलतियाँ हो जाती हैं.’ देने वाले मुलायम सिंह जैसे कई राजनेता भी शामिल हैं.
दहेज़ हत्याएं करने
वाले लोग भी शामिल हैं. पत्नियों को पीटने वाले पति भी शामिल हैं. बेटियों को कोख
मारने वाले, अशिक्षित रखने वाले माँ-बाप भी शामिल हैं. धर्म-संस्कृति के नाम पर
औरतों की स्वतंत्रता छीनने वाले लोग, धर्म-गुरु भी शामिल हैं और ऐसे धार्मिक कानून
भी.
सड़क पर बेहूदा फब्तियां कसने वाले लोग भी और लड़कियां छेड़ने वाले लोग भी.
सड़क पर बेहूदा फब्तियां कसने वाले लोग भी और लड़कियां छेड़ने वाले लोग भी.
कित्नु आठवां भारत-
स्त्रियों का भारत इनसे डरने वाला नहीं है.
जब श्रीराम सेने
बैंगलोर में पबों में महिलाओं को संस्कृति के नाम पर पीटती हैं वो स्त्रियाँ भी
पिंक-चड्डी कैम्पेन चलाकर मुंहतोड़ जवाब देती हैं.
जब तीन-तलाक़ जैसी
व्यवस्था क्रूरता की हदें पार कर देती है तो अधिकार पाने ‘ऑल इंडिया मुस्लिम महिला
आन्दोलन’ न्यायपालिका का सहारा लेकर सारी व्यवस्था को ही गैर-कानूनी साबित कर देता
है.
जब शनि शिगनापुर या
हाजी अली में पूजा/प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है तो तृप्ति देसाई और
भूमाता ब्रिगेड आन्दोलन खड़ा कर अपना हक वापिस प्राप्त करते हैं.
आठवां इंडिया नौवें
इंडिया से डरा हुआ नहीं है. वह इसकी जड़े हिलाने में समर्थ है, और उसने हिला के भी रख दिया है.
मैं सफल स्त्रियों
में कई बड़े नाम- इंदिरा गाँधी, किरण मजूमदार शॉ, इला भट्ट, चंदा कोचर इत्यादि
उदाहरण स्वरुप ले सकता हूँ किन्तु मैं यहाँ अपने मित्रों- रीना, शुचि, प्रतीक्षा,
याशिका, निशा, रोशनी आदि के नाम लेना चाहूँगा जिनकी स्वतंत्रता, समर्थता,
कार्यकुशलता, निर्णय लेने की क्षमता, सोच और सफलता खुद में एक मिसाल है.
इनकी सफलता मैं इनके
अलावा इनके माता-पिता का भी अपूर्व योगदान है. मेरी मित्र निवेदिता जब अपनी फोटो
के साथ कैप्शन में यह लिखती है- ‘The portrait of amazing parents of a
girl child.’ तो उनके संघर्ष और मेहनत सर्व-दृश्य होते है.
हालाँकि मैं यह दावा नहीं कर सकता कि कार्यस्थल तक का सफ़र और कार्यस्थल पर
उन्हें पूर्णतः सुरक्षा मुहैया हुई है.
विशाखा गाइडलाइन्स ही 1997 में आई थीं. उसके पहले तक कार्यस्थल पर सुरक्षा
के नाम पर गाइडलाइन्स तक नहीं थीं.
कार्यस्थल पर असुरक्षा और कार्यस्थल तक पहुँचाने में असुरक्षा को लेकर मुझे
दो बड़े केस क्रमश: - रसिका राजू केस (जनवरी २०१७, इनफ़ोसिस पुणे) और प्रतिभा
श्रीकाँटा मूर्ति केस (दिसम्बर 2005, बैंगलोर) याद हैं. लेकिन इनके बारे में किसी
अन्य आर्टिकल में बात करेंगे.
विश्व बैंक अनुसार अगर Women Workforce Participation अभी के लगभग इक-चौथाई
से 100% हो गया तो देश की जीडीपी 60% तक बढ़ जाएगी!
मुझे उम्मीद ही नहीं यकीन है कि ऐसा होगा क्यूंकि आठवाँ भारत नौवें भारत से
न तो डरा हुआ है न डरने वाला है.
अंत में, मुझे यह लेख लिखने की आवश्यकता हुई मतलब अभी भी बहुत कुछ किया
जाना जरूरी है और इसके लिए तमाम निजी-सरकारी प्रयास और सुरक्षा के कई उपाय आवश्यक
होंगे तथा समाज और पुलिस का नजरिया बदलने की भी आवश्यकता होगी.
साथ ही, यह आपको तय करना है कि आप कौन से भारत से हैं- आठवें या नौवें?
कमला भसीन अनुसार पितृसत्ता का मतलब पुरुषों द्वारा स्त्रियों से
दोयम दर्ज़े का व्यवहार करना नहीं है बल्कि इसका मतलब है लिंग से परे किसी भी के द्वारा
स्त्री को दूसरे दर्ज़े के नागरिक की तरह व्यवहार करना, उनके विकास में रुकावटें
डालना. इसलिए महिलायें भी पितृसत्तात्मक हो सकती हैं.
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