तीन हृदयाघात के कारण लुई वाश्कान्स्की का हृदय बहुत कमज़ोर हो चला था। मधुमेह उन्हें पहले से था। शरीर में रक्त को पम्प करने में अक्षम उस बीमार दिल के साथ उसे बहुत लम्बा नहीं चलना था कि तभी उसके जीवन में डेनीज़ डारवाल की मृत्यु का प्रवेश हुआ।
डेनीज़ की मृत्यु एक कार-दुर्घटना में हुई थी। शराब के नशे में धुत एक कार-ड्राइवर ने उनके और उनकी माँ को रौंद डाला था। माँ की तुरन्त मृत्यु हो गयी थी और डेनीज़ का मस्तिष्क भी रक्त के अभाव में मृत हो गया था। यद्यपि उनका हृदय तब भी लगातार धड़क रहा था। उसी रात नौ बजे डॉक्टरों ने उन्हें बचाने के सारे उद्यम रोक दिये क्योंकि ऐसा करने के बाद भी मृत मस्तिष्क के साथ जीवन आगे सम्भव न था। डेनीज़ के पिता एडवर्ड से सम्पर्क स्थापित किया गया। उन्हें बताया गया कि उनकी पुत्री को वापस जीवित लाना अब सम्भव नहीं है। जीवन का अर्थ चेतना होता है। चेतना मस्तिष्क में अधिष्ठित है। मस्तिष्क रक्त न मिलने से मिनटों में मर जाता है। डेनीज़ मस्तिष्क-मृत यानी ब्रेन-डेड है। लेकिन एक काम क्या वे करना चाहेंगे ? क्या वे अपनी प्यारी बिटिया का हृदय बीमार लुई वाश्कान्स्की नामक एक अधेड़ व्यक्ति को दान में देना चाहेंगे ?
अपनी बिटिया का मुस्कुराता चेहरा एडवर्ड के सामने तैरने लगा। कैसे उसने उसके लिए केक बेक किया था। नयी नौकरी की पहली तनख़्वाह और उसने अपने पापा के लिए बाथरोब ख़रीदा था। एडवर्ड अपने आँसू न रोक सके। महज़ चार मिनटों में उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि वे अपनी प्यारी बिटिया का हृदय इस अधेड़ आदमी के जीवन के लिए दान कर देंगे जिसे वे जानते तक नहीं हैं।
दक्षिण अफ़्रीका में उस दिन डॉ.क्रिश्चियन बर्नार्ड ने मनुष्य से मनुष्य में वह पहला सफल हृदय-प्रत्यारोपण किया। डेनीज़ का हृदय लुई वाश्कान्स्की के सीने में रुकने से पहले अठारह दिन धड़का। डेनीज़ के वृक्क एक दस साल के अश्वेत बच्चे जॉनेथन वॉन विक को लगाये गये। हंगामा मचा : कैसे किसी श्वेत महिला के गुर्दे किसी अश्वेत को दिये जा सकते हैं !
पच्चीस वर्षीय डेनीज़ मरकर इतिहास रच गयी थीं। अपने देह के दो अंगों के दान से उसने लिंगभेद और नस्लभेद , दोनों को अपनी भाषा में सटीक प्रत्युत्तर दिया था। कई बार मृत्यु का शाश्वत मौन वह कर जाता है जो सम्पूर्ण जीवन शब्द-व्यापार करके भी नहीं कर पाता।
डेनीज़ की मृत्यु एक कार-दुर्घटना में हुई थी। शराब के नशे में धुत एक कार-ड्राइवर ने उनके और उनकी माँ को रौंद डाला था। माँ की तुरन्त मृत्यु हो गयी थी और डेनीज़ का मस्तिष्क भी रक्त के अभाव में मृत हो गया था। यद्यपि उनका हृदय तब भी लगातार धड़क रहा था। उसी रात नौ बजे डॉक्टरों ने उन्हें बचाने के सारे उद्यम रोक दिये क्योंकि ऐसा करने के बाद भी मृत मस्तिष्क के साथ जीवन आगे सम्भव न था। डेनीज़ के पिता एडवर्ड से सम्पर्क स्थापित किया गया। उन्हें बताया गया कि उनकी पुत्री को वापस जीवित लाना अब सम्भव नहीं है। जीवन का अर्थ चेतना होता है। चेतना मस्तिष्क में अधिष्ठित है। मस्तिष्क रक्त न मिलने से मिनटों में मर जाता है। डेनीज़ मस्तिष्क-मृत यानी ब्रेन-डेड है। लेकिन एक काम क्या वे करना चाहेंगे ? क्या वे अपनी प्यारी बिटिया का हृदय बीमार लुई वाश्कान्स्की नामक एक अधेड़ व्यक्ति को दान में देना चाहेंगे ?
अपनी बिटिया का मुस्कुराता चेहरा एडवर्ड के सामने तैरने लगा। कैसे उसने उसके लिए केक बेक किया था। नयी नौकरी की पहली तनख़्वाह और उसने अपने पापा के लिए बाथरोब ख़रीदा था। एडवर्ड अपने आँसू न रोक सके। महज़ चार मिनटों में उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि वे अपनी प्यारी बिटिया का हृदय इस अधेड़ आदमी के जीवन के लिए दान कर देंगे जिसे वे जानते तक नहीं हैं।
दक्षिण अफ़्रीका में उस दिन डॉ.क्रिश्चियन बर्नार्ड ने मनुष्य से मनुष्य में वह पहला सफल हृदय-प्रत्यारोपण किया। डेनीज़ का हृदय लुई वाश्कान्स्की के सीने में रुकने से पहले अठारह दिन धड़का। डेनीज़ के वृक्क एक दस साल के अश्वेत बच्चे जॉनेथन वॉन विक को लगाये गये। हंगामा मचा : कैसे किसी श्वेत महिला के गुर्दे किसी अश्वेत को दिये जा सकते हैं !
पच्चीस वर्षीय डेनीज़ मरकर इतिहास रच गयी थीं। अपने देह के दो अंगों के दान से उसने लिंगभेद और नस्लभेद , दोनों को अपनी भाषा में सटीक प्रत्युत्तर दिया था। कई बार मृत्यु का शाश्वत मौन वह कर जाता है जो सम्पूर्ण जीवन शब्द-व्यापार करके भी नहीं कर पाता।
पाँच लोग परस्पर स्नेह पीकर अमर हो गये उस रोज़ : डेनीज़ डारवाल, डॉ.क्रिश्चियन बर्नार्ड , एडवर्ड डारवाल, लुई वाश्कान्स्की और जॉनेथन वॉन विक।
( आगामी पुस्तक 'यदा यदा हि स्वास्थ्यस्य' से एक अंश। चित्र इण्टरनेट से साभार। )
-Dr Skand Shukla
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