तुम्हारी तरह शब्द नहीं बुन पाता,
कुछ ख्याल बे-ख्याल ही रह जाते हैं.
थक-हार
तुम्हें उठा लेता हूँ.
तुम्हारे शब्द
अपने से लगते हैं.
जब कभी पैरहन पे
शुन्य दीखता है,
आगोश में भरता हूँ
तुम्हारे ख़त,
तुम्हारा 'रसीदी टिकट'.
मेरा हरा रंग,
तुम्हारे बसंती ख्याल.
कितने आस-पास हैं हम!